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    भारत की पूरी कौम बूढी क्यों हो गई है - ओशो

    Why the whole nation of India has become old - Osho


     भारत की पूरी कौम बूढी क्यों हो गई है - ओशो 

    स्वामी राम जापान गए। जिस जहाज पर वह थे, एक नब्बे वर्ष का जर्मन बूढा चीनी भाषा सीख रहा था। अब चीनी भाषा सीखनी बहुत कठिन बात है। शायद मनुष्य की जितनी भाषाएं हैं, उनमें सबसे ज्यादा कठिन बात है। क्योंकि चीनी भाषा के कोई वर्णाक्षर नहीं होते, कोई क ख ग नहीं होता। वह तो चित्रों की भाषा है। इतने चित्रों को सीखना नब्बे वर्ष की उम्र में! अंदाजन किसी भी आदमी को दस वर्ष लग जाते हैं ठीक से चीनी भाषा सीखने में। तो नब्बे वर्ष का बूढा सीख रहा है सुबह से सांझ तक, यह कब सीख पाएगा? सीखने के पहले इसके मर जाने की संभावना है। और अगर हम यह भी मान लें, बहुत आशावादी हों कि यह जी जाएगा दस-पंद्रह साल, तो भी उस भाषा का उपयोग कब करेगा? जिस चीज को दस साल सीखने में लग जाएं, अगर दस-पच्चीस वर्ष उसके उपयोग के लिए न मिलें, तो वह सीखना व्यर्थ है। लेकिन वह बूढा सुबह से सांझ तक डेक पर बैठा हुआ। है और सीख रहा है!

            रामतीर्थ के बरदाश्त के बाहर हो गया। उन्होंने जाकर तीसरे दिन उससे कहा कि क्षमा करें, मैं आपको बाधा देना चाहता हूं। एक बात मुझे पूछनी है। आप यह क्या कर रहे हैं? यह चीनी भाषा आप कब सीख पाएंगे? आपकी उम्र तो नब्बे वर्ष हुई! और उस बूढ? आदमी ने रामतीर्थ की तरफ देखा और उसने कहा कि जब तक मैं जिंदा हूं, तब तक जिंदा हूं। और जब तक मैं जिंदा हूं, तब तक मर नहीं गया हूं। मरने का चिंतन करके मैं मरने के पहले नहीं मरना चाहता हूं। और अगर मरने का हम चिंतन करें कि कल मैं मर जाऊंगा, तो यह तो मुझे जन्म के पहले दिन से ही विचार करना पड़ता कि कल मैं मर सकता हूं, कभी भी मर सकता हूं। तो फिर मैं जी भी नहीं पाता। लेकिन नब्बे साल मैं जीया हूं। और जब तक मैं जी रहा हूं, तब तक सीलूँगा, ज्यादा से ज्यादा जानूंगा, ज्यादा से ज्यादा जीऊंगा। क्योंकि जब तक जी रहा हूं, तब तक एक-एक क्षण का पूरा उपभोग करना जरूरी है ताकि मेरा पूरा आत्म-विकास हो।

            और उसने रामतीर्थ से पूछा कि आपकी उम्र क्या है? रामतीर्थ की उम्र तो केवल बत्तीस वर्ष थी। वे बहत झेंपे होंगे मन में, और कहा कि सिर्फ बत्तीस वर्ष। तो उस बूढे आदमी ने जो कहा था, वह पूरे भारत को सुन लेना चाहिए। और उस बूढ़े आदमी ने कहा था कि तुम्हें देख कर मैं समझता हूं कि तुम्हारी पूरी कौम बूढी क्यों हो गई है। तुम्हारी पूरी कौम से यौवन, शक्ति, ऊर्जा क्यों चली गई है। तुम क्यों मुर्दे की तरह जी रहे हो पृथ्वी पर। क्योंकि तुम मृत्यु के संबंध में अत्यधिक विचार करते हो और जीवन के संबंध में जरा भी नहीं। शास्त्र भरे पड़े हैं, जो नर्क में क्या है और कहां--पहला नर्क कहां है, दूसरा नर्क कहां है, तीसरा कहां है, सातवां कहां है--उस सबकी ब्योरेवार व्यवस्था बताते हैं। पूरे नक्शे बनाए हैं। स्वर्ग कहां है, सात स्वर्ग हैं, कि कितने स्वर्ग हैं, उन सबका हिसाब दिया हुआ है। नर्क और स्वर्ग की पूरी ज्यॉग्राफी हमने खोज ली है। लेकिन पृथ्वी की ज्यॉग्राफी खोजने के लिए पश्चिम के लोगों का हमें इंतजार करना पड़ा। वह हम नहीं खोज पाए। क्योंकि पृथ्वी पर हम जीते हैं, उसके भूगोल की जानकारी की हमने कोई फिक्र न की। लेकिन जिन स्वर्गों और नों का हमें कोई संबंध नहीं है, उनकी हमने इस संबंध में पूरी जानकारी कर ली है। 

              हमने इतने डिटेल्स में व्यवस्था की है कि अगर कोई पढ़ेगा, तो यह नहीं कह सकता कि यह कोई काल्पनिक लोगों ने लिखा होगा। एक-एक इंच हमने इंतजाम कर दिया है कि वहां कैसा नर्क है, कितनी आग जलती है, कितने कड़ाहे जलते हैं, कितने राक्षस हैं और किस तरह लोगों को जलाते हैं और क्या करते हैं। स्वर्ग में क्या है, वह हमने । इंतजाम कर लिया है। लेकिन इस जमीन पर क्या है? इस जमीन की हमने कोई फिक्र नहीं की, क्योंकि यह जमीन तो एक विश्रामगृह है, मर जाना है यहां से तो जल्दी। इसकी चिंता करने की क्या जरूरत है? जीवन अधार्मिक है, क्योंकि जीवन की चिंता हमने नहीं की। जीवन धार्मिक नहीं हो सकता जब तक धर्म इस जीवन के संबंध में विचार करे, इस जीवन को व्यवस्था दे, इस जीवन को वैज्ञानिक बनाए--जब तक यह नहीं होगा, तब तक जीवन धार्मिक नहीं हो सकता।

    - ओशो 

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